Balance Sheet In Tally In Hindi – बैलेंस शीट क्या है ?
हेल्लो दोस्तों ! आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे की बैलेंस शीट क्या ( Balance Sheet In Tally ) होती है ? यह क्यों बनाई जाती ? और किसी व्यापार या कंपनी की आर्थिक स्थिति को बैलेंस शीट के माध्यम से हम कैसे जान सकते है ! तो आइये शुरू करते है –Balance Sheet In Tally In Hindi –
Balance Sheet In Tally In Hindi – बैलेंस शीट क्या है ?
Contents
बैलेंस शीट क्या है ? ( What Is Balance Sheet )
बैलेंस शीट एक ऐसा statement होता है जो की एक निश्चित तारीख पर किसी व्यवसाय , व्यापार या कंपनी की आर्थिक स्थिति को दर्शाता है !
सरल शब्दों में हम कह सकते है कि बैलेंस शीट ( Balance Sheet ) एक ऐसा दस्तावेज है जिसमे किसी फर्म , कंपनी या व्यापार की संपतियां , देनदारियां , लेनदारियां और पूंजी का विवरण दिया होता है ! बैलेंस शीट को व्यवसाय के वितीय वर्ष के अंत में तैयार किया जाता है !
बैलेंस शीट क्यों बनाई जाती है ?
किसी व्यापार , व्यवसाय या संगठन में बैलेंस शीट उसके वितीय वर्ष के अंत में इसलिए बनाई जाती है ताकि हम यह जान सके कि व्यापार , व्यवसाय या संगठन की आर्थिक स्थिति कैसी है ! प्रत्येक व्यापारी ट्रेडिंग तथा प्रॉफिट & लॉस अकाउंट ( Trading and Profit & Loss Account ) बनाने के बाद अपनी आर्थिक दशा जानना चाहता है ! जिसके लिए वह आर्थिक दस्तावेज तैयार करता है !
ट्रेडिंग तथा प्रॉफिट & लॉस अकाउंट तो किसी व्यवसाय में सकल लाभ ( Gross Profit ) , सकल हानि ( Gross Loss ) या शुद्ध लाभ ( Net Profit ) अथवा शुद्ध हानी ( Net Loss ) को प्रकट करता है जबकि इसके अलावा भी व्यापारी को अन्य चीजे जाननी होती है जैसे – उसके लेनदार कितने है , देनदार कितने है , उसकी पूंजी कितनी है , बैंक लोन कितना है तथा संपतियां और दायित्व कितने है यह सब बैलेंस शीट के माध्यम से जान सकते है ! बैलेंस शीट ट्रेडिंग एवं प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट बनाने के बाद तैयार की जाती है ! किसी व्यवसाय के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है !
बैलेंस शीट में दो पक्ष होते है जिसमे बायीं और का हिस्सा दायित्व ( Liabilities ) वाली साइड कहलाता है जबकि दाई और का हिस्सा संपतियां ( Aseets ) वाला हिस्सा कहलाता है ! दायित्व वाली साइड में व्यक्तिगत एवं वास्तविक खातो के क्रेडिट बैलेंस लिखे जाते है तथा एसेट्स साइड में उसके डेबिट बैलेंस लिखे जाते है ! बैलेंस शीट के दोनों भागो को योग हमेशा समान होता है ! किसी कंपनी या व्यवसाय की वितीय स्थिति कैसी है और उसकी भविष्य में आगे बढ़ने की कितनी सम्भावनाये है इसका अनुमान हम बैलेंस शीट से लगा सकते है !
सम्पतियो का वर्गीकरण
जैसा की हम जानते है कि सम्पतियो को बैलेंस शीट के दाई और लिखा जाता है ! इसमें संपतियां निम्न तरह की होती है –
स्थाई सम्पति ( Fixed Assets ) : यह संपतियां स्थाई प्रकृति की होती है तथा व्यापार के संचालन के लिए इसे ख़रीदा जाता है ! इनके खरीदने का उद्देश्य ट्रेडिंग लाभ कमाने में मदद देना है ! इसमें निम्न प्रकार की स्थाई संपतियां आती है –
- Plant & Machinery
- Furniture & Fixture
- Land
- Building
- Vehicle
- Patent
- Good Will
- Trade Mark आदि !
तरल संपतियां (Liquid Assets ) : लिक्विड एसेट्स में उन सम्पतियो को शामिल किया जाता है जिनकी वसूली शीघ्र हो जाती है या जिसे शीघ्र cash में बदला जा सकता हो ! जैसे
- Cash at Bank
- Investment
- Bonds
- Debtors
- Stock
वेस्टिंग एसेट्स ( Wasting Assets ) : जिन सम्पतियो के मूल्य में समय के व्यतीत होने के साथ – साथ निरंतर कमी आती रहती है उसे वेस्टिंग एसेट्स कहते है !
Contingent Assets : यह वास्तव में सम्पति नहीं होती है लेकिन इनका अस्तित्व किसी घटना के घटित होने पर निर्भर करता है ! यदि घटना वास्तव में घटित होती है तब यह सम्पति का रूप धारण कर लेती है अन्यथा नहीं !
दायित्वों का वर्गीकरण
सम्पतियो की तरह ही दायित्वों को भी उनकी प्रकृति के अनुसार निम्न वर्गों में बांटा जाता है –
स्थायी दायित्व ( Fixed Liabilities ) : जिन दायित्वों का भुगतान लम्बी अवधि या दीर्घकाल में अथवा व्यापार की समाप्ति पर किया जाता है वह फिक्स्ड लाइबिलिटी कहलाती है ! जैसे
- Traders Capital
- Long – Term Loan
चालू दायित्व ( Current Liabilities ) : जिन दायित्वों का payment अल्पकाल या शीघ्र ही निकट भविष्य में करना होता है उसे Current Liabilities कहते है ! जैसे –
- Bank Loan
- Creditors
- Bills Payable
- Outstanding Expenses
- Advance Income
Contingent Liabilities : यह वास्तव में दायित्व नहीं होते , लेकिन भविष्य में किसी घटना के प्रतिकूल होने पर वास्तविक liabilities बन जाते है ! ये दायित्व बैलेंस शीट के बाहर नोट के रूप में लिखे जाते है ! इनको बैलेंस शीट के अन्दर के हिस्से में लिखा जा सकता है ,लेकिन इसमें टोटल शामिल नहीं किया जाता है !
कैपिटल का वर्गीकरण
व्यापारी द्वारा लगाई कैपिटल को भी निम्न हिस्सों में बांटा जा सकता है –
Proprietors Capital : व्यापार प्रारंभ करने पर व्यापारी द्वारा लगाई गई पूंजी को व्यापारी की कैपिटल कहा जाता है ! यह कैपिटल प्रॉफिट एंड लॉस की रकम से परिवर्तित होती रहती है !
Fixed Capital : कैपिटल का वह भाग जो स्थाई सम्पतियों में लगा होता है उसे Fixed Capital कहते है !
Floating Capital : चल सम्पतियों में लगी हुई कैपिटल फ्लोटिंग कैपिटल कहलाती है !
Loan Capital : व्यापारी द्वारा व्यापार संचालन के लिए जो लोन लिया जाता है वह लोन पूंजी कहलाता है !
Working Capital : कैपिटल का वह हिस्सा , जो स्थाई संपतियां खरीदने के बाद शेष रह जाता है और जिसका संचालन में हर समय प्रयोग होता है , Working Capital कहलाती है !
दोस्तों उम्मीद करता हूँ Balance Sheet In Tally In Hindi आर्टिकल आपको समझ आ गया होगा , आप हमें कमेंट के माध्यम से जरुर बताये !
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