शेयरों की ट्रेडिंग कैसे होती है – Share Market Guide In Hindi
Share Market Trading Tips In Hindi / Share Market Guide – शेयरों की ट्रेडिंग वह सबसे महत्वपूर्ण कारक है , जो निवेशको को शेयरों की तरफ आकर्षित करता है ! शेयर बाजार ( Share Market ) में निवेश की अनुभूति तथा बाजार में उतार – चढाव की स्थिति बहुत सारे लोगो को निवेश के इस तरीके की तरफ आकर्षित करती है ! कई लोगो को इस क्षेत्र से जुडी आय के साथ – साथ इस पूरी प्रक्रियां में हिस्सा लेने का अनुभव भी आनंद देता है ! आज हम इस लेख के माध्यम से शेयरों की ट्रेडिंग कैसे होती है ? ( Share Market Me Trading Kaise Kare ) के बारे में विस्तार से जानेंगे ! तो आइये शुरू करते है Share Market Guide In Hindi –
स्टॉक एक्सचेंज ( Stock Exchange )
स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसा माध्यम है जिसकी सहायता से हम शेयरों की खरीद – फरोख्त ( ट्रेडिंग ) करते है ! पहले स्टॉक एक्सचेंज एक निर्धारित स्थान पर होता था जहाँ पर निवेशक आमने – सामने होकर ट्रेडिंग करते थे ! उस समय ‘ट्रेडिंग रिंग’ होती थी , जहाँ शेयरों के सौदों का निपटान होता था ! समय के साथ – साथ स्टॉक एक्सचेंज की कार्य – प्रणाली में बदलाव आ चूका है ! अब स्टॉक एक्सचेंज का स्वरूप आभासी बन चूका है ! स्टॉक एक्सचेंज का प्रत्येक ‘सदस्य ब्रोकर’ ट्रेडिंग टर्मिनल द्वारा सेंट्रल प्लेस से जुड़ा होता है , जहाँ शेयरों की खरीद – फरोख्त के आर्डर का मिलान करके सौदे निपटाए जाते है ! उदाहरण के तौर पर चेनई में बेठा व्यक्ति कानपूर में बेठे व्यक्ति के साथ ‘ट्रेडिंग’ टर्मिनल’ के माध्यम से शेयरों के सौदे कर सकता है !
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ये ट्रेडिंग टर्मिनल सेटेलाईट तथा दुसरे संचार माध्यमो द्वारा एक – दुसरे से तथा स्टॉक एक्सचेंज के सेन्ट्रल प्लेस से जुड़े होते है ! आजकल सभी स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की खरीद – फरोख्त हेतु ऑर्डर प्रस्तुत करने के लिए सब कुछ ऑटोमेटेड है ! निवेशक को अपने ब्रोकर के माध्यम से या फिर वह स्वयं भी कंप्यूटर , लेपटोप या फिर अपने मोबाइल के माध्यम से शेयरों की ट्रेडिंग ( Share Market Guide ) कर सकता है ! यदि कोई निवेशक ब्रोकर के माध्यम से ट्रेडिंग करना चाहता है तो सर्वप्रथम उसे शेयर की खरीद अथवा बिक्री का ऑर्डर प्रस्तुत करना होता है ! यह आदेश ब्रोकर के ट्रेडिंग टर्मिनल द्वारा स्टॉक एक्सचेंज के टर्मिनल तक पहुँचता है ! वहां इस ऑर्डर का मिलान अन्य टर्मिनल से आये विभिन्न ऑर्डर से किया जाता है !
यहाँ स्टॉक एक्सचेंज की स्वचालित प्रणाली इस ऑर्डर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दुसरे ऑर्डर का मिलान करती है तथा खरीद – बिक्री का सौदा तय हो जाता है ! शेयरों की खरीद – बिक्री के लिए दो तरह के ऑर्डर प्रस्तुत किये जा सकते है – पहला है ‘लिमिट ऑर्डर और दूसरा है ‘मार्केट ऑर्डर’
लिमिट ऑर्डर ( What Is Limit Order )
यदि आप शेयर ट्रेडिंग किसी ब्रोकर के माध्यम से कर रहे है तो आपको अपने ब्रोकर को कोनसा शेयर किस लिमिट ऑर्डर पर ख़रीदा जायेगा यह बताना होता है ! यदि आप ऑनलाइन ट्रेडिंग कर रहे है तो आप स्वयं से भी अपना ऑर्डर प्लेस कर सकते है ! लिमिट ऑर्डर को फिक्स प्राइस ऑर्डर ( Fix Price Order भी कहते है ! इस ऑर्डर पर आप एक निश्चित मूल्य पर ही शेयर खरीदने या बेचने के निर्देश देते है ! आमतौर पर निवेशक ब्रोकर के कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखने वाले शेयर के उस समय चल रहे भाव से थोडा निचे ही यह दाम तय करते है ! यानी यदि आप किसी पूर्व निर्धारित दाम पर शेयर खरीदना या बेचना चाहते है तो भी लिमिट ऑर्डर का उपयोग कर सकते है !
उदाहरण के तौर पर मान लीजिये , आपको टाटा मोटर्स के 100 शेयर 110 रूपये प्रति शेयर के भाव से खरीदने है , लेकिन उस समय टाटा मोटर्स के शेयर का 110 रूपये से ज्यादा का भाव चल रहा है और यदि आपको लगता है की 112 रूपये पर चलने वाला शेयर आपको 110 रूपये तक मिल जायेगा तो आप उस शेयर की लिमिट प्राइस 110 रूपये प्रति शेयर के हिसाब से ऑर्डर कर देते है ! आपके द्वारा दिया गया निर्देश तब तक एग्जीक्यूट नहीं होगा जब उस शेयर की मार्केट प्राइस 110 रूपये प्रति शेयर नहीं हो जाती है ! यदि उस दिन उस शेयर की प्राइस बाजार बंद होने तक 110 रूपये 50 पैसे तक की हुई तो आपका शेयर खरीदने का ऑर्डर कैंसिल हो जायेगा ! क्योंकि आपने 110 रूपये शेयर खरीद का ऑर्डर किया हुआ था ! इसी तरह से आप shares की बिक्री के लिए भी इस प्रकार के लिमिट ऑर्डर लगा सकते है !
मार्केट ऑर्डर ( What Is Market Order )
मार्केट ऑर्डर का उपयोग तब किया जाता है जब आप किसी शेयर को मार्केट प्राइस पर खरीदना चाहते हो ! उदाहरण के लिए मान लीजिये आप किसी कंपनी के 100 शेयर खरीदने के लिए अपने ब्रोकर को ऑर्डर देते है ! तब उस समय जो शेयर का भाव चल रहा है उस भाव पर आपका ऑर्डर एग्जीक्यूट हो जायेगा ! जिस शेयर को आपने ख़रीदा है वह आपको किस भाव पर मिला है यह आपके ऑर्डर के एग्जीक्यूट होने के बाद पता चल जायेगा ! शेयर ट्रेडिंग के दौरान जब आप कोई बड़ा सौदा कर रहे हो और मार्केट में उतार – चढाव अधि है तो आप ज्यादा मार्केट ऑर्डर का प्रयोग न करे ! आप इस ऑर्डर का प्रयोग तभी करे जब आप जल्दी में कोई शेयर खरीदना या बेचना चाहते चाहते हो और उस समय सौदे के भाव को लेकर आप ज्यादा चिंतित न हो !
स्टॉप लोस ऑर्डर ( What Is Stop Loss Order )
ऐसे निवेशक जो अपना लाभ सीमित रखना चाहते है या पूर्व निर्धारित स्तर पर लाभ कमाना चाहते है , वे स्टॉप ऑर्डर ( Stop Loss ) का प्रयोग करते है ! वे निवेशक जिन्होंने शेयर ख़रीदे या बेचे है , पर बाजार के उलट दिशा में चलने की स्थिति में अपने नुकसान से बचना चाहते है ! ऐसे में ‘स्टॉप लोस ऑर्डर’ की सहायता से वे अपना नुकसान सिमित कर सकते है !
बाजार में भारी अस्थिरता के समय यह ऑर्डर निवेशको को बड़े नुकसान से बचा लेता है ! यह ऑर्डर उन निवेशको के लिए भी लाभदायक है , जो short term के लिए shares का सौदा करते है , परन्तु शेयर के बाजार भाव पर नजर नहीं रख पाते है ! स्टॉप लोस ऑर्डर में निवेशक एक तय दाम के साथ ब्रोकर के कंप्यूटर में एक अन्य दाम भी निर्धारित करता है , जिसे ‘ट्रिगर प्राइस’ भी कहते है ! जैसे ही बाजार में शेयर का भाव इस ट्रिगर प्राइस तक पहुँचता है , आपका ऑर्डर सक्रिय हो जाता है ! यह ट्रिगर प्राइस ऑर्डर देते समय बाजार में चल रहे मूल्य से अधिक या कम होना चाहिए !
उदाहरण के लिए एक निवेशक ने 100 रूपये प्रति शेयर के मूल्य से किसी कंपनी के शेयर ख़रीदे ! लेकिन वह यह नहीं जानता है कि शेयर के दाम बढ़ेंगे या गिरेंगे ! लेकिन वह चाहता है कि यदि शेयर की कीमत गिरे तो वह अपना नुकसान 10 रूपये प्रति शेयर तक सीमित रख सके ! ऐसी स्थिति में निवेशक ये शेयर बेचने के लिए अपना स्टॉप लोस ऑर्डर 90 रूपये प्रति शेयर पर दे सकता है और इसमें ट्रिगर प्राइस होगी 91 रूपये प्रति शेयर ! अब जैसे ही शेयर का भाव गिरकर 91 रूपये प्रति शेयर होगा , निवेशक का ऑर्डर सक्रिय हो जायेगा ! पर यह लागु तभी होगा जब शेयर का मूल्य 90 रूपये प्रति शेयर पहुँच जायेगा !
इसी प्रकार यदि निवेशक कोई शेयर बेचता है , लेकिन उसे वह कम दाम पर खरीदना चाहता है तब भी वह स्टॉप लोस ऑर्डर का उपयोग कर सकता है ! बहुत से बड़े निवेशक इस ऑर्डर का उपयोग तब करते है , जब उनके विश्लेषण के अनुसार एक पूर्व निर्धारित स्तर पार करने के बाद शेयर का भाव तेजी से बढ़ने या गिरने की सम्भावना हो !
यह ऑर्डर ‘डे ट्रेडिंग’ ( Day Trading ) करने वाले निवेशको तथा ‘इंट्रा – डे’ में मार्जिन व् मार्जिन प्लस में इंट्रा – डे के अंतर्गत निवेशक को खरीदी व् बिक्री का निपटान उसी दिन बाजार बंद होने से पहले करना होता है तथा उसके लिए ब्रोकर अपने ग्राहकों को ‘मार्जिन’ व् ‘मार्जिन प्लस’ की सुविधा देते है , जिसके अंतर्गत निवेशक अपने मूल धन के चार से छः गुना अधिक राशी से शेयरों की खरीद – बिक्री कर सकता है ! स्टॉप लोस ऑर्डर डे ट्रेडिंग करने वाले निवेशको के लिए बहुत लाभदायक है , क्योंकि उन्हें उसी दिन बाजार बंद होने के पहले सौदों का निपटान करना होता है !
लिवाली – बिकवाली ( Liwali – Bikwali )
शेयरों की खरीद व् बिक्री ‘लिवाली – बिकवाली’ ट्रेडिंग कहलाती है ! वैसे यह प्रक्रिया हर निवेशक के लिए एक जैसी दिखती है , लेकिन अलग – अलग श्रेणी के निवेशको के लिए यह खरीद – फरोख्त कई मायनो में अलग होती है ! इसमें सबसे बड़ा फर्क है मात्रा का !
एक छोटा निवेशक किसी विशेष कंपनी के 50 से 100 शेयर खरीदेगा लेकिन इन शेयरों की खरीद का आंकड़ा तब बहुत ज्यादा होगा , जब इस कम्पनी के शेयरों की खरीद एच. एन. आई. ( हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल अर्थार्त व्यक्तिगत रूप से जिसके पास निवेश के लिए भारी मात्रा में पूंजी में हो ) द्वारा की जाएगी ! वही दूसरी और बहुत बड़ी संख्या में संस्थागत निवेशक भी होते है , जो एक ही transaction में लाखो शेयरों का लेन – देन करते है ! इसलिए एक्सचेंज में शेयरों की खरीद व् बिक्री में बहुत बड़ा अंतर आता है ! यही कारण है कि शेयरों के भाव पल – पल में बदलते है !
संस्थागत निवेशक तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ा निवेश करने वाले निवेशको द्वारा लाखो शेयरों की एक ही दिन में कई – कई बार खरीद व् बिक्री शेयरों के भाव को कई बार बहुत ऊपर तो कई बार बहुत निचे ले आती है !
अब ‘डीमैटीरियलाईजेशन’ के कारण शेयरों के कागजी लेन – देन की प्रथा ख़त्म हो गई है और इसी कारण अब कोई भी निवेशक किसी कंपनी का यदि एक शेयर भी खरीदना चाहता है तो खरीद सकता है !
शेयर खरीदने की प्रक्रियां ( Stock buying processes )
वह निवेशक जो शेयर खरीदना चाहता है , उसे खरीद का ऑर्डर ( Buy Order ) देना होगा ! जब यह ऑर्डर मान्य हो जाता है , तब पे आउट के बाद सिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि निवेशक का शेयर उसके डी – मैट अकाउंट में आ गया है ! वही दूसरी और डे – ट्रेडर होते है , जो अपनी पोजीशन उसी दिन स्क्वायर ऑफ करते है , इसलिए उन्हें शेयर न तो मिलते है और न ही वे देते है ! उन्हें उस शेयर की खरीद व् बिक्री से होने वाले फायदे व् नुकसान का जो अंतर होता है वह प्राप्त होता है !
उदाहरण के लिए यदि एक डे – ट्रेडर ने 100 शेयर रिलायंस के 10000 रूपये में सुबह लिए और उसी दिन उन 100 शेयरों को 12000 रूपये में बेच दिया ! ऐसी स्थिति में उस निवेशक को रिलायंस के शेयर न तो प्राप्त होंगे और न ही वह देगा , लेकिन उसे खरीद व् बिक्री के बीच जो अंतर है , वह फायदा मिलेगा ! उपरोक्त स्थिति में निवेशक को 2000 रूपये का लाभ हुआ ! लेकिन उसमे से ब्रोकर चार्ज और दुसरे खर्च ( टैक्स ) निकालकर बाकी बचा लाभ निवेशक के अकाउंट में आ जायेगा !
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